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अध्याय सुबोधिनी टीका।
[११ हमारी कलमको ले लीजिये, कलमका टूट जाना तो उसका क्रियारूप परिणमन है और विना किसी हरकतके रक्खी हुई नबीन कलमका पुराना हो जाना परिणाम है। निष्क्रियभावोंमें इसी प्रकारका परिणमन होता है।
__ भाववती और क्रियावती शक्तिवाले पदार्थों के नामभाववन्तौ क्रियावन्तौ द्वावेतौ जीवपुद्गलौ ।
तौ च शेषचतुष्कं च षडेते भावसंस्कृताः ॥ २५ ॥
अर्थ-जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य भाववाले भी हैं और क्रियावाले भी हैं। तथा जीव, पुगल और शेष चारों द्रव्य भाव सहित हैं।
भावार्थ-जीव और पुद्गलमें तो क्रिया और भाव दोनों शक्तियां हैं परन्तु धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चार द्रव्य केवल भाव शक्ति वाले ही हैं । इन चारों में क्रिया नहीं होती, ये चागें ही निष्क्रिय हैं।
क्रिया और भावका लक्षण --- तत्र क्रिया प्रदेशानां परिस्पंदश्चलात्मकः ।
भावस्तत्परिणामोस्ति धारावाहकवस्तुनि ॥ २६ ॥
अर्थ --प्रदशीके हिलने चलनको क्रिया कहते हैं और भाव परिणामको कहते हैं जो कि प्रत्येक वस्तु में धारावाही ( बराबर ) से होता रहता है।
भावार्थ-प्रदेशोंका एक स्थानसे दूसरे स्थानमें जाना आना तो क्रिया कहलाती है और वस्तुमें जो निष्क्रिय भाव हैं उन्हें भाव कहते हैं । इसका खुलासा चोबीसवें श्लोक, कर चुके हैं।
परिणमन सदा होता है-- नासंभवमिदं यस्मादर्थाः परिणामिनोऽनिशं ।
तत्र केचित् कदाचिदा प्रदेशचलनात्मकाः॥२७॥
अर्थ-यह बात असिद्ध नहीं है कि पदार्थ प्रतिक्षण परिणमन करते रहते हैं । उसी परिणमनमें कभी २ किन्हीं किन्हीं पदार्थोके प्रदेश भी हलन चलन करते हैं ।
भावार्थ-सभी पदार्थ निरन्तर एक अवस्थाको छोड़कर दूसरी अवस्था तो बदलते ही रहते. हैं परन्तु कभी जीव और पुगलमें उनके प्रदेशोंकी हलन चलन रूप क्रिया भी होती है।
ग्रन्थकारकी प्रतिज्ञातद्यथाचाधिचिद्रव्यदेशना रम्यते मया।।
युक्त्यागमानुभूतिभ्यः पूर्वाचार्यानतिक्रमात् ॥ २८ ॥ अर्थ----ग्रन्थकार कहते हैं कि अब हम चेतन द्रव्य के विषयमें ही व्याख्यान काये ।