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नातिवाक्यामृत *
: मीय, मजीव, धर्म अधर्म, बन्ध और मोक्षतत्वका यथार्थज्ञान होना द्रव्यानुयोगशास्त्रका फल है' शा अब पदार्थोंका निरूपण करते हैं:
जीप, अजीव, लोक ( चतुर्गतिरूपसंसार ) बन्ध तथा उसके कारण-मिथ्यात्व आदि मोक्ष और कारण (संबर और निजरा) ये पदार्थ श्रागममें निरूपण किये गये हैं। ॥१॥
क प्राप्त, आगम और पदार्थाका यथार्थ हा शरमा मादर्शन है !
साम्पमानका निरूपण करते हैं:..जो वस्तुके समस्तस्वासपको जैसाका तैमा, हीनाधिकता-रहित तथा संशय, विपर्यय और
सायरूप मिथ्याशानसे रहित निश्चय करता है एवं जो मनुग्योका तीसरा दिभ्यनेत्र है उसे : सममान कहते हैं ॥१॥
मह सभ्यहान पवित्र मनवाले मनुष्यको हितकारक और अहितकारक पदार्थोंका दिग्दर्शन कराता बाकतकी मानि और हितके परिहारमें कारण होता है इसलिये वह जन्मसे अन्धे पुरुष को लाठी
मतिमान (इन्द्रियोंसे उत्पन्न होनेवाला मान ) देखे हुए पदार्थों में उत्पन्न होता है । अतहान एवथा बिना देखे हुए ( अतीन्द्रिय सुक्ष्म धर्माधर्मादि) पदार्थों में भी उत्पन्न होता है। अतएव यदि मनुष्यों का चित्त भयाभावसे दूषित नहीं है तो उन्हें तस्वज्ञानकी प्राप्ति कठिन नहीं है ॥३॥ ... बाधा रहित प्रस्तुमें भी जो बुद्धि विपरीत हो जाती है उसमें ज्ञाताका ही दोष है वस्तुका नहीं। * मन्द दृष्टि मनुष्यको एक चन्द्रमामें जो दो चन्द्रमाका भ्रम होता है वह उमद्दष्टि का ही दोष है
माया नहीं ॥४॥ ...जिस मनुध्यमें सम्यग्दर्शन नहीं है उसका शास्त्रज्ञान केवल उसके मुखकी खुजलीको दूर करता
है-मर्थान् वाद-विवाद करनेमें ही समर्थ, होना है। क्योंकि उसमें प्रात्मदृष्टि नहीं होती। एवं जिसमें शान
नहीं है उसका चरित्र धारण करना विधवा स्त्रीके आभूषण धारण करने के समान निरर्थक है ॥शा ... जो दूध जमा देनेसे दही हो चुका है, वह फिर दूध नहीं हो सकता उसी प्रकार जो आत्मा है. पानसे विशुद्ध हो चुकी है वह पुनः पापोंसे लिप्त नहीं होती ॥६॥
. शरीर अत्यन्त मलिन है और प्रात्मा अत्यन्त विशुद्ध है इमलिये वियफी मनुष्यको इसे शरीरसे लक और नित्य चितधन करना चाहिए" ॥॥
___ 'जिसकी पाणी व्याकरण, साहित्य, इतिहास और आगमोंको पढ़कर विशुद्ध नहीं हुई एवं जिसने ... नीतिशास्त्रों को पढ़कर अपनी बुद्धिको परिष्कृत और विशुद्ध नहीं बनाया वह केवल दूसरोंके सहारे रह
कर पवेश उठाना है और अन्धेक समान है ।
१, २, ३, ४, ५, ६, देखो यशस्तिलक श्रा० ६ पृष्ट ३२५ ॥
E,६, देखो वशस्तिजक श्रा०८ ३९९ | रिया शस्तक ६ ।