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* नीतिवाक्यामृत .*
...ममा माणियोंको केवल तत्वाधोंकी अदा (मम्यग्दर्शन) मोज्ञमाप्रिमें समर्थ नहीं है। क्या भूले मन
या मारसे अमरफल पक जाने हैं ? अर्थान नहीं एकल । र भाषा:-जिस प्रकार भूपये मनुष्य की इच्छा मात्र असफल नी पकन; किन्तु प्रयत्न पकी है। कारवायोंकी श्रद्धामास मुक्ति नहीं होनी; किन्तु मम्यक चारित्रम्प प्रयत्नम मान्य है ॥६॥
इसीप्रकार शानमात्रसे पदार्थोका निश्चय हो जाता है; परन्तु अभिलषित वनु (मोक्ष) की प्रानि
सकती; अन्यथा “यह जल है" ऐमा ज्ञानमात्र होने पर प्यामकी शान्ति हानी चाहिये | है इसीप्रकार केवल चारित्रसे मुक्ति नहीं होती; जैसे कि जन्मस प्रन्या पुरुष अनार आदिकं वृक्षार
श्री जाये तो क्या उसे हायाको छोड़कर अनार आदि फस्त प्राम हो मकत है ? अर्थान नहीं हो । असी प्रकार जीवादि सात तत्वांक यथार्थनानक बिना कंचन पानगा मात्रम मुनिश्रीकी प्रापि सकसी
ने पुरुषको शान होने पर भी चारित्र (गमन) के बिना यह अभिनपिन स्थानमें नहीं पहुँन भाव अम्बा पुरुष शानके बिना कंबल गमनादिम्प किया करके भी अभिलपिन स्थानमें प्राप्त नहीं
वीरभदाहीन पुरुषकी क्रिया और नाम सिफल होते है। इसलिये मम्यादर्शन, मम्मरमान और रिख इन तीनोंकी प्राप्तिम मुकि होसी है ॥३॥ सम्पादर्शनसे मनुश्यको स्वर्गलक्ष्मीकी प्राप्ति होती है, मम्यामानम उम्मकी कीनिफीमुदीका प्रभार
और सम्पचारित्रसे उसकी इन्द्रादि द्वारा पूजा होती है तथा मभ्यग्दशन, मम्यमान और मम्यक ले मोषकी प्राप्ति होती है ॥१०॥
जो पात्मारूपी पारा अनादिकाल मिथ्यात्वानि कर कुधातुओंक, मम्बन्धम अशुद्ध हो गया है 1 पिशुद्ध करनेके लिये सम्बग्दर्शन, मम्मान और मश्यकचारिस अन्ठा माधन है-अर्थान से वियव करनेके लिये सम्यकचारित्र अग्नि है और मम्यज्ञान उपाय है नथा मभ्यग्दर्शन (चित्तकी विशुद्ध)
सौचषि (नीवुके रममें धुटा हुश्रा सिघ्रप) है-अर्थान पर तीनोंकी प्राप्रिम. या आत्मारूपी पारा
होकर सामरिक समम्त व्याधियों को यम करने और मोच प्रात्र करनमें समर्थ होता ॥१॥ ___ मनुष्यको मन्यादर्शनकी प्राप्तिके लिये अपने चिनको विशुद्ध बनाना चाहिये । मानलस्मीको प्राविक
सालोंका अभ्याम करना चाहिये एवं मम्यकचारित्रकी प्रानिक लिये शारीरिक ऋण महन का मा, भूड, गोरी, कुशील और परिग्रह इन पाप क्रियाओंका त्याग करना चाहिय एवं न्यायम भनिन सालिको पात्रदान आदि शुभ कार्योमें लगाना चाहिये ||१०|| परमम्मदर्शनका लक्षण कहते हैं :
प्राप्त-मत्याथ ईश्वर बागम और मोक्षोपयोगी जीचादि मान तत्वोंका लोकमढ़ना बाद ५
रेमो यशस्तिनक ६ठामाश्याम ४ २२।२१नो मलकपरश्याम पृ
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