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इसलिणा, जीवनः .. :: .. .. .. :.. .......::: आस्था से वास्ता होने पर रास्ता स्वयं, शास्ता हो कर सम्बोधित करता साधक को साधी बन साथ देता है। आस्था के तारों पर ही साधना की अंगुलियाँ चलती हैं साधक की, सार्थक जीवन में तब स्वरातीत सरगम झरती है ! समझी बात, बेटा ?
और,
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तूने जो
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अपने आपको पतित जाना है लघु-तम माना है यह अपूर्व घटना इसलिए है कि तूने निश्चित रूप से प्रभु को, गुरु-तम को पहचाना है ! तेरी दूर-दृष्टि में पावन-पूत का बिम्ब
बिम्बित हुआ अवश्य ! असत्य की सही पहचान ही सत्य का अवधान है, बेटा !
मृक माटी :: "