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अनन्य आत्मीयता का
संस्पर्शन हो रहा है। और वह धृति-धारिणी धरती कुछ कहने को आकर्षित होती है, सम्मुख माटी का आकर्षण जो रहा हैं।
लो!
भीगे भावों से
सम्बोधन की शुरूआत : "सत्ता शाश्वत होती है, बेटा ! प्रति-सत्ता में होती हैं अनगिन सम्भावना उत्थान-पतन वह, हमखस का..दाना-सा. .....: ::: : बहुत छोटा होता है बड़ का बीज वह !
समुचित क्षेत्र में उसका वपन हो समयोचित खाद, हवा, जल उसे मिलें अंकुरित हो, कुछ ही दिनों में विशाल काय धारण कर
वट के रूप में अवतार लेता है। यही इसकी महत्ता है सत्ता शाश्वत होती है सत्ता भास्वत होती है बेटा :
रहस्य में पड़ी इस गन्ध का अनुपान करना होगा
मूक माटी :