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दूसरे दुःखित न हों मुख पर पूँघट लाती हूँ घुटन छुपाती-छुपाती
पीती ही जा रही हूँ, केवल कहने को जीती ही आ रही हूँ।
इस पर्याय की इति कब होगी : इस काया की च्युति कब होगी ? बता दो, माँ इसे !
इसका जीवन यह उन्नत होगा, या नहीं अनगिन गुणों पाकर अबनत होगा, या नहीं कुछ उपाय करो माँ ! कुछ अपाय हरो माँ !
और सुनो, विलम्ब मत करो पद दो, पथ दो पाथेय भी दो माँ !"
फिर, कुष्ट क्षणों के लिए मौन छा जाता हैदोनों अनिमेष एक दूसरे को ताकती हैं धरा की दृष्टि माटी में माटी की दृष्टि धरा में
मुक मारी :: 5