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और, संकोच-शीला लाजवती लावण्यवती .. सरिता-तट की माटी अपना हृदय खोलती है
माँ धरती के सम्मुख : "स्वयं पतिता हूँ और पातिता हूँ औरों से, "अधम पापियों से पद-दलिता हूँ माँ !
सुरख-मुक्ता हूँ दुःख-युक्ता हूँ
तिरस्कृत त्यक्ता हूँ माँ : इस पीडी अंन्या : ... . व्यक्त किसके सम्मुख करूँ !
क्रम-हीना हूँ पराक्रम से रीता
विपरीता है इसकी भाग्य रेखा। यातनाएँ पीड़ाएँ ये ! कितनी तरह की वेदनाएं कितनी और आगे कब तक पता नहीं इनकी छोर हैं या नहीं !
श्वास-श्वास पर नासिका बन्द कर आर्त-घुली चूट बस पीती ही आ रही हूं
और इस घटना से कहीं
4 :: मूक माटी