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अब,
धीरे-धीरे
होता
"मौन का माँ की ओर से !
जिसके सल-छलों से शून्य विशाल भाल पर
गुरु- गम्भीरता का उत्कर्षण हो रहा हैं,
विरह- रिक्तता, अभाव -- अलगाव-भाव का भी शनैः शनैः
अपकर्षण हो रहा है,
मूकमाटी
बहुत दूर ""भीतर '' जाजा - समाती है
जिसकी आँखें
और सरल
और तरल हो आ रही हैं, जिनमें
हृदयवती चेतना का दर्शन हो रहा है,
जिसके
दोनों गालों पर गुलाव की आभा ले
हर्ष के संवर्धन से दृग - विन्दुओं का अविरल वर्षण हो रहा है,
नियोग कहो या प्रयोग सहज रूप से अनायास