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आस्था की नासा से सर्वप्रथम
समझी बात'! और यह भी देख ! कितना खुला विषय है कि उजली-उजली जल की धारा . . . .. . बादलों से झरती है धरा-धूल में आ धृमिल हो दल-दल में बदल जाती है।
यही धारा यदि नीम की जड़ों में जा मिलती
कटुता में ढलती है; सागर में जा गिरती लवणाकर कहलाती है वही धाग, बेटा :
विषधर मुख में जा
विष-हाला में ढलती है, सागरीय शुक्तिका में गिरती, स्वाति का काल हो, मुक्तिका बन कर झिलमिलाती है बेटा, वही जलीय सत्ता"!
जैसी संगति मिलती है वैसी मति होती है मति जैसी, अग्रिम गति मिलती जाती मिलती जाती"
और यही हुआ हैं युगों-युगों से भवो-भवों से !
8 :: भूक माटी