________________
लज्जा की घूँघट में डूबती-सी कुमुदिनी प्रभाकर के कर-वन से बचना चाहती है वह
अपनी पराग को सराग - मुद्रा कोपाँखुरियों की ओट देती है ।
अबला बालाएँ सब तरला ताराएँ अब
छाया की भाँति
अपने पतिदेव
-
सुदूर "दिगन्त में..
सुगन्ध पवन
बह रहा है;
बहना ही जीवन है
चन्द्रमा के पीछे-पीछे हो
छुपी जा रहीं
कहीं
दिवाकर उन्हें
देख न ले, इस शंका से ।
मन्द्र-मन्द
2 मूक माटी
तो ! '''इक्षर'''! अधखुली कमलिनी डूबते चाँद की
चाँदनी को भी नहीं देखती आँखें खोल कर |
ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करना सब के वश की बात नहीं है, और वह भी..
स्त्री- पर्याय मेंअनहोनी-सी घटना !