Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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विशेष जिज्ञासुओं को एक दूसरे के समान विषयक ग्रन्थ अवश्य देखने चाहिए। इसी अमित्राय से अनुवाद में उस उस विषय का साम्य और वैषम्य दिखाने के लिये जगह जगह गोम्मटसार के अनेक उपयुक्त स्थल उद्भुत तथा निविष्ट किये हैं ।
विषय-प्रवेश :
जिज्ञासु लोग जब तक किसी भी ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय का परिचय नहीं कर लेते तब तक उस ग्रन्थ के अध्ययन के लिये प्रवृत्ति नहीं करते । इस नियम के अनुसार प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन के निमित्त योग्य अधिकारियों की प्रवृत्ति कराने के लिये यह आवश्यक है कि शुरू में प्रस्तुत ग्रन्थ के विषय का परिचय कराया जाय । इसी को "विषय-प्रवेश" कहते हैं ।
विषय का परिचय सामान्य और विशेष दो प्रकार से कराया जा सकता है।
(क) ग्रन्थ किस तात्पर्य से बनाया गया है। उसका मुख्य विषय व है और वह कितने विभागों में विभाजित है। प्रत्येक विभाग से सम्बन्ध रखने वाले अन्य कितने-कितने और कौन-कौन विषय हैं; इस्पादि वर्णन करके ग्रन्थ के शब्दात्मक कलेवर के साथ विषय-रूप आत्मा के सम्बन्ध का स्पष्टीकरण कर देना अर्थात् ग्रन्थ का प्रधान और गौण विषय क्या-क्या है तथा वह किस-किस कम से वर्णित है, इसका निर्देश कर देना, ग्रह विषय का सामान्य परिचय है ।
(ख) लक्षण द्वारा प्रत्येक विषय का स्वरूप बतलाना यह उसका विशेष परिचय है ।
प्रस्तुत प्रत्थ के विषय का विशेष परिचय तो उस उस विषय का वर्णन-स्थान में ही यथासम्भव मूल में किया विशेचन में करा दिया