Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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उस उस विषय के प्रसंग में टिपप्णी के तौर पर यथासम्भव कर दी गई है, जिससे कि प्रस्तुत ग्रन्थ के अभ्यासियों को आगम और पञ्चसंग्रह के कुछ उपयुक्त स्थल मालूम हो तथा मतमेव और विशेषताएँ हात हो,
प्रस्तुत ग्रन्थ के अभ्यासियों के लिये आगम और पञ्चसंग्रह का परिचय करना लाभवायक है; क्योंकि उम ग्रन्थों के गौरव का कारण सिर्फ उनकी प्राचीनता ही नहीं है, बल्कि उनकी विषय-गम्भीरता सथा विषयस्फुटता मी उनके गौरव का कारण है।
'गोम्मटसार यह दिगम्बर सम्प्रदाय का कर्म-विषयक एक प्रतिष्ठिन ग्रन्थ है, जो कि इस समय उपलब्ध है। यद्यपि वह श्वेताम्बरीष आगम तथा पञ्चसंग्रह को अपेक्षा बहुत अर्वाचीन है, फिर भी उसमें विषय-वर्णन, विषय-विभाग और प्रत्येक विषय के लक्षण बहुत स्फुट हैं । गोम्मटसार के 'जीवकाण्ड' और 'कर्मकाण्ड' ये मुरुप बो दिमाग हैं । ची कर्मप्रन्य का विषय जांचकात में हो है
और यह इससे बहुत बड़ा है यद्यपि चौप फर्मवग्य के सब विषय प्रायः जीवकाण्ड में वर्णित हैं, तथापि दोनों की वर्णनशैली बहुत अंशों में मिन्म है।
जीवकान्ड में मुख्य बोस प्ररूषणाएं हैं:-१ गुणस्थान. १ जोध स्थान, १. पर्याप्ति, १ प्राण, १ संज्ञा, १४ मार्गणाएं और १ उपयोग, कुल बीस । प्रत्येक प्ररूपण का उसमें अनुत विस्ता और विश वर्णन है । अनेक स्थलों में चौथे कर्मग्रन्थ के साथ उसका मतभेव भी है। ___इसमें मन्छेह नहीं कि चौथे कर्मग्रन्थ के पाठियों के लिये जीवकाण्ड एक खास देखने को वस्तु है। योंकि इससे अनेक विशेष बातें मालूम हो सकती हैं । कमविषयक अनेक विशेष बातें जैसे श्वेताम्बरीष ग्रन्थों में लक्ष्य हैं, वैसे ही अनेक विशेष वास, विगम्बरोय प्रयों में भी लभ्य हैं । इस कारण दोनों सम्प्रदाय के