________________ (11) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध नियम नहीं है। यदि दोष न लगे और लाभ जानें तो कुछ कम पूर्वकोडि वर्ष तक भी वे एक ही क्षेत्र में एक ही स्थान में रह जायें। इसलिए यह अनियत कल्प है। 10. दसवाँ पर्युषण कल्प कहते हैं- किसी एक स्थान पर रहने को पर्युषण कहते हैं। पर्युषण दो प्रकार के हैं। एक तो वह जिसे गृहस्थ जानता है और दूसरा वह जिसे गृहस्थ नहीं जानता। इसमें जब पर्युषण पर्व का प्रतिक्रमण करने से पहले साधु से लोग पूछते हैं, तब वह अपने रहने के विषय में वर्तमान योग्य' कहता है; परन्तु पर्युषण पर्व का प्रतिक्रमण करने के पश्चात् तो कार्तिकी पूनम पर्यन्त रहने का निश्चय से ही कहता है। वहाँ गृहस्थ की आज्ञा से पांच दिन यावत् रहना। इस तरह पाँच- पाँच दिन रहते हुए पचासवें दिन पर्युषण पर्व करना। उसमें कल्पसूत्र का गृहस्थों के सम्मुख वाचन करना। इसके बाद सत्तर दिन तक निश्चय से रहना। याने कि जिसे गृहस्थ जानता है, वह तो भाद्रपद सुदी पंचमी से ले कर कार्तिक सुदी पूनम तक रहना है और दूसरा जिसे गृहस्थ नहीं जानता वह आषाढ सुदी पूनम से ले कर भाद्रपद सुदी पंचमी तक रहना जानना। ___ क्योंकि कभी भी कोई गृहस्थ साधु से पूछे कि आप चातुर्मास के लिए रहे? उस समय साधु कहे कि जैसी क्षेत्रस्पर्शना अथवा पाँच दिन तक हैं; ऐसा जवाब दे। इस कारण से आगे के दिन गृहस्थ नहीं जानता। और पर्युषण करने के पश्चात् तो वह अवश्य वहीं रहता है। इसलिए गृहस्थ जान सकता है। इस प्रकार जघन्य से सत्तर दिन और उत्कृष्ट से छह महीने के पर्युषण जानना। यह कल्प श्री ऋषभदेव और श्री महावीर के साधुओं के लिए निश्चय से समझना और बाईस तीर्थंकरों के साधुओं के लिए निश्चय से नहीं। . इस तरह दस कल्प कहे गये हैं। ये दसों कल्प श्री ऋषभदेव तथा श्री महावीरस्वामी के साधुओं के लिए निश्चय से जानना। तथा मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधुओं के लिए तो एक शय्यातर, दूसरा चार महाव्रत, तीसरा ज्येष्ठ और चौथा कृतिकर्म याने वंदन। ये चार कल्प निश्चय से होते हैं और