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ज्ञानार्णवः ।
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कहते हैं, सो यथार्थ क्यों नहीं है ? हम परमात्माको समस्त जगत्की मायासे पृथक् मानते हैं”—उसका यह उत्तर है कि, -
तुम जो ऐसा कहते हो, सो एकान्तपक्षसे कहते हो । वस्तुका स्वरूप सर्वथा एकान्तरूप प्रमाणसिद्ध नहीं है, क्योंकि वस्तुका स्वरूप जो अनेकान्तात्मक है; वही सत्यार्थ है । 'इसकी चर्चा वाघा निर्वाधाखरूप जैनके प्रमाण नयके कथन करनेवाले स्याद्वादरूप जो अनेक शास्त्र हैं, उनसे जाननी चाहिये । यहां इतना ही अभिप्राय जानना कि, सामान्यतासे तो परमात्माको समस्त मतवाले मानते हैं, परन्तु उसके स्वरूप में विवाद है । और समस्त मतावलंबी परस्पर विधिनिषेध करते हैं, उनके विरोधको जैनियोंका स्याद्वादन्याय दूरकरके यथार्थ स्वरूपको स्थापन करता है । वही स्वरूप भव्यजीवोंके श्रद्धान तथा नमस्कार करने योग्य है ।
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यहां कोई प्रश्न करे कि, परमात्मामें नमस्कार करनेकी योग्यता कैसे है ? इसका उत्तर यह है,
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यह जीवनामा पदार्थ निश्चयनयसे स्वयं ही परमात्मा है, किन्तु अनादिकालसे कर्माच्छादित होनेके कारण जबतक अपने स्वरूपकी प्राप्ति नहीं होती है, तबतक इसको जीवात्मा कहते हैं । जीव अनेक हैं, इस कारण जो जीव कर्म काटकर परमात्मा अर्थात् सिद्ध हो गये हैं; यदि उनका स्वरूप जान उन्हींके ऐसा अपना भी खरूप जानै तो उनके स्मरण ध्यानसे कर्मोको काटकर जीवात्मा स्वयम् उस पदको प्राप्त होता है । अतः . जबतक कर्म काटकर उनके ऐसा न होय, तबतक उस परमात्माके खरूपको नमस्कार करना आवश्यक है, तथा उसका स्मरण ध्यान करना भी उचित है ॥ १ ॥
आगे आचार्य इष्ट देवका नाम प्रकाश करके नमस्कार करते हैं । प्रथम ही इस कर्मभूमिकी आदिमें आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेवजी हुए हैं, इसलिये उनको नमस्कार करते हैं,
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भुवनाम्भोजमार्त्तण्डं धर्मामृतपयोधरम् ।
योगिकल्पतरुं नौमि देवदेवं वृषध्वजम् ॥ २ ॥
अर्थ - मैं (शुभचन्द्राचार्य) वृषध्वज कहिये वृषका है ध्वज अर्थात् चिह्न जिसको, अथवा वृप ं कहिये धर्मकी ध्वजास्वरूप श्री ऋषभदेव आदि तीर्थंकरको नमस्कार करता हूं | कैसा है ऋषभदेव ? देवदेव कहिये चार प्रकार के देवोंका देव है । इस विशेषणसे T समस्त देवोंके द्वारा पूज्यता दिखाई । फिर कैसा है ? भुवन कहिये लोकरूपी कमलको प्रफुल्लित करने केलिये सूर्यसमान है । इस विशेषणसे भगवान् के जन्मकल्याणकमें अनेक अतिशय चमत्कार हुए, उनसे लोकमें प्रचुर आनंद प्रवर्त्ता ऐसा जनाया है । फिर कैसा है प्रभु ? धर्मरूपी अमृत वर्षानेको मेघके समान है । इस विशेषणसे केवलज्ञानप्राप्तिके