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रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला.
श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचितः
ज्ञानार्णवः ।
भापानुवादसहितः ।
दोहा ।
करमघातिया नाश करि, केवललक्ष्मी पाय । नाशि अघाति लई मुकति, चन्दों तिनके पाय ॥ १ ॥ परमागम केवलिकथित, गणधरगूंथित सार । ताको चन्दों भावजुत पाऊं ज्ञान उदार ॥ २ ॥ गौतमको आदि दे, भये पंचमैं काल । तिनिके पद वंदि करि, तजूं सकल जंजाल ॥ ३ ॥ देवशास्त्रगुरु वंदि करि, ज्ञानार्णवश्रुत देखि | करूं वचनिका देशमय, भव्यजीव हित पेखि ॥ ४ ॥
मंगलाचरणम्. ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेषप्रभवानन्दनन्दितम् ।
निष्ठितार्थमजं नौमि परमात्मानमव्ययम् ॥ १ ॥
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अर्थ -- आचार्यवर्य कहते हैं कि मैं परमात्माको नमस्कार करता हूं; परा- उत्कृष्टमा-लक्ष्मी - जिस आत्माको होय सो परमात्मा है, इस विशिष्ट गुणके धारक अरहन्त तथा सिद्ध भगवान् ही हैं । सो परमात्मा कैसा है ? ज्ञानकी जो लक्ष्मी अर्थात् समस्त पदार्थोंका जानना तथा वीतरागतारूप लक्ष्मीके दृढ आलिंगनसे ( एकरूपतासे) उत्पन्न हुए आनंदसे (परम अतीन्द्रिय अनन्त सुख से ) आनन्द स्वरूप है । इस विशेषणसे अन्यमती परमात्माके स्वरूपका भिन्न प्रकारसे वर्णन करते हैं, अतः उनसे विभिनता दिखाई है । अर्थात् कई वैष्णव तो "परमात्मा परब्रह्म है, और सर्व व्यापक
१ भाषाटीकाकार पं० जयचन्द्रजीका मंगलाचरण । २ श्लोक अनुष्टुप् ।