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अर्क-अर्थो
कमल। -विवाह-पु० मदारके पेड़के साथ किया जाने नवीस-पु० अजी लिखनेवाला । वाला विवाह (तीसरा विवाह करनेवाले पुरुषके लिए पहले | अ न-पु० [सं०] पांडुके पाँच पुत्रोंमेंसे मझले जो महामदारसे विवाह करनेका विधान किया गया है, ताकि भारत-युद्धमें पांडवपक्षके नायक थे; हैहयनरेश कार्तवीर्य; तीसरी पत्नी चौथी हो जाय) । -व्रत-पु० सूर्यका एक इंद्र; सफेद रंग; एक पेड़ जिसकी छाल दवाके काम आती है। व्रत (यह माघ शुक्ला सप्तमीको किया जाता है); राजाका अर्णव-पु० [सं०] समुद्रधारा; अंतरिक्ष; इंद्र, सूर्यः एक प्रजासे कर लेने में सूर्यके नियमका अनुसरण करना (सूर्य वृत्त; चारकी संख्या; रत्न, मणि । ८ महीने अपनी किरणोंसे पानी सोखता और बरसातमें अर्णवोद्भव-पु० [सं०] चंद्रमा; अमृत । उसे कई गुना करके बरसा देता है, अर्थात् लोककी वृद्धिके अर्णवोद्गवा-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी । लिए ही रस ग्रहण करता है)।
अर्थ-पु० [सं०] शब्दका अभिप्राय, मानी; मतलब प्रयोजन अर्क-पु० [अ०] रस; किसी चीजका भभकेसे खींचा हुआ | काम; मामला; हेतु, निमित्त; इंद्रियोंके विषय-शब्द, रस पसीना।
स्पर्श, रस, रूप और गंध, धन, शारीरिक आवश्यकताओंकी अर्कोपल-पु० [सं०] सूर्यकांत मणि चुन्नी।
पूर्तिका साधन; पैसा कमाना जो जीवनके चार पुरुषार्थों से अर्गजा*-पु० दे० 'अरगजा'।
एक माना गया है। उपयोग; लाभ; दिलचस्पी; स्वार्थ; अगल-पु० [सं०] ब्योड़ा, अगड़ी; रोक; किवाड़, लहर इच्छा; प्रार्थना; मूल्य निवारण; फल, परिणाम; कुंडलीमें एक नरक मांस ।
लग्नसे दूसरा स्थान । -कर-वि० जिससे पैसा मिले । अर्गला-स्त्री० [सं०] अगड़ी; सिटकिनी; हाथी बाँधनेकी [स्त्री० 'अर्थकरी' |] -गौरव-पु० अर्थकी गंभीरता । जंजीर।
-चिंतन-पु० द्रव्योपार्जनका उपाय सोचना। -चिंताअलिका-स्त्री० [सं०] छोटी अर्गला ।
स्त्री० धन या पैसेकी चिंता । -दंड-पु. जुर्मानेकी अर्गलित-वि० [सं०] अगड़ीसे बंद किया हुआ।
सजा। -दोष-पु० अर्थ-संबंधी दोष । -पति-पु० कुबेर अर्गली-स्त्री० [सं०] दे० 'अर्गला'।
राजा। -पिशाच-पु० अति कृपण धनी। -प्रबंधअर्घ-पु० [सं०] पूजनके १६ ५पचारोंमेंसे एक दूब, दूध, पु० आय-व्ययकी व्यवस्था। -भृत-पु० तनखाह चावल आदि मिला हुआ जल जो देवता या पूजनीय लेकर काम करनेवाला, वेतनभोगी। -मंत्री(त्रिन)-पु० पुरुषके सामने रखा जाय; हाथ धोनेके लिए दिया गया मंत्रिमंडलका वह मंत्री जिसके जिम्मे राज्यका अर्थप्रबंध जल; दाम, मूल्य; अश्व, घोड़ा, मधु, शहद । -दान-पु० हो। -व्यवस्था-स्त्री० सार्वजनिक राजस्व और उसके अर्घ अर्पण करना। -पतन-पु० सस्ती होना, भाव आय-व्ययकी पद्धति । -शास्त्र-पु० अर्थविज्ञान (राजगिरना; (स्लंप) दे० 'मूल्यावपात'। -पात्र-पु० अर्घ नीतिविज्ञान; नीतिशास्त्र)। -सिद्ध-वि० प्रसंगसे ही अर्पण करनेका पात्र, अरघा । -वृद्धि-स्त्री० भाव बढ़ना, जिसका अर्थ स्पष्ट हो। -सिद्धि-स्त्री० अभीष्टकी प्राप्ति; महँगी होना। -संस्थापन-पु० व्यापारिक वस्तुओंका उद्देश्यकी सिद्धि । -हीन-वि० निर्धन; बे-मानी असफल। मूल्य निर्धारित करना।
अर्थतः-अ० [सं०] अर्थकी दृष्टिसे; वस्तुतः, सचमुच । अर्घा-पु० दे० 'अरघा'।
अर्थातर-पु० [सं०] दूसरा विषय; नयी स्थिति; दूसरा अर्ध्य-वि० [सं०] पूजनीय; बहुमूल्य । पु० पूजामें देने मतलब । -न्यास-पु० अर्थालंकार जहाँ सामान्यसे विशे
योग्य वस्तु, अर्मके उपयुक्त द्रव्य; एक प्रकारका मधु । षका, विशेषका सामान्यसे अथवा कारणसे कार्यका या कार्य अर्चक-वि० [सं०] पूजा करनेवाला।
से कारणका समर्थन हो। अर्चन-पु०, अर्चना-स्त्री० [सं०] पूजन, वंदन । अर्थागम-पु० [सं०] धनागम, आय । अर्चनीय, अर्य-वि० [सं०] पूजनीय सम्मान्य । अर्थात्-अ० [सं०] यानी; दूसरे शब्दोंमें । अर्चमान-वि० [सं०] दे० 'अर्चनीय।
अर्थाना*-स० क्रि० अर्थ लगाना, व्याख्या करना । अर्चा-स्त्री० [सं०] पूजा प्रतिमा जिसकी पूजा करनी हो।। अर्थापत्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार 'जिसमें यह दिखअचि(स)-स्त्री० [सं०] किरण; अग्नि-शिखा; प्रकाश, द्युति।। लाया जाय कि जब इतनी बड़ी बात हो गयी तो इस छोटीअर्चित-वि० [सं०] पूजित सम्मानित । पु० विष्णु । सी बातके होनेमें क्या संदेह हो सकता है।' परिणाम; एक भर्चिष्मान् (मन्)-वि० [सं०] चमकवाला; लपटवाला । प्रमाण जिसमें एक बातसे दूसरी बातकी सिद्धि होती है। पु० अग्नि ; सूर्य।
अर्थापन-पु० (इंटरप्रेटेशन) अर्थ लगाना; विशेष ढंगसे अर्ज-पु० [अ०] निवेदन प्रार्थना; चौड़ाई ।
समझना या समझाना; व्याख्या । अर्जन-पु० [सं०] कमाना; संग्रह करना।
अर्थार्थी (र्थिन)-वि० [सं०] धनकी कामना रखने या अर्जनीय-वि० [सं०] संग्रह या प्राप्त करने योग्य ।
उसकी प्राप्तिके लिए प्रयास करनेवाला; गरज रखनेवाला। अर्जित-वि० [सं०] कमाया हुआ; बटोरा हुआ। -छडी- अर्थालंकार-पु० [सं०] वह अलंकार जो शब्द-प्रयोगपर स्त्री० (अर्ल्ड लीव) वह छुट्टी जिसे पानेका वह कर्मचारी नहीं, किंतु अर्थपर आश्रित हो। अधिकारी माना जाता है जिसने निर्धारित समयतक काम | अर्थिक-वि० [स०] किसी वस्तुका चाहनेवाला। करनेके बाद उसका अर्जन कर लिया हो।
अर्थित-वि० [सं०] माँगा हुआ; चाहा हुआ। अर्जी-स्त्री० [अ०] प्रार्थनापत्र, दरख्वास्त । -दावा-पु० अर्थी (र्थिन)-वि० [सं०] चाह, गरज रखनेवाला प्रार्थी दीवानी या मालके मुकदमे में वादी पक्षका प्रार्थनापत्र । - धनी । पु० म.गनेवाला; भिक्षुका वादी।
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