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चौतीस स्थान दर्शन
(अ) प्रथमोपशम सम्यक्रय-मिथ्यात्व के मलिन, अगाढ़, (जो कि सूक्ष्म दोष है) दोष अनन्तर जो उपशम सम्यक्त्व होता है उसे लगते है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते है । अनादि मिथ्या
१८ संज्ञी मार्गणा दृष्टि मिश्रप्रकृति व सम्यक्प्रकृति की उचलाना कर चुकने वाले जीवों के अनातानुबंधी ४ संज-जो संशी अर्थात् मन सहित है उन्हें मिथ्याव : इन पांच के उपयम से प्रथनापगम ___ संज्ञी कहते है । इसकी मार्गणा २+१ है। सम्यक्त्व होता है, और ७ को सत्तावालो के
(१) संजी-संज्ञो पंचेन्द्रियही होते है। ये प्रकृतियों के उपशम से प्रथम सम्यमा वा अतिदमें में। ये जाते है। होता है।
(२) असंजी-एकेन्द्रियसे लेकर असंशी (ब) द्वितीयोपशम सम्यक्र-क्षायोपश- पंचेन्द्रिय तक होते है । ये सब तिथंच है। मिक सम्यक्त्व के अनन्तर जो उपशम सम्यक्त्व अनु भय-सयोगकेवशी व अयोग केवली व होता है उसे द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते है। सिद्धभगवान् है, य न संज्ञी है क्यों कि मन और यह भी ७ प्रकृतियों के उपशम रो होता नही, और न असंज्ञी है क्यों कि अविवेकी नही। है । सप्तम गुणस्थानवी जीव यदि उगम सयोगीके यद्यपि द्रव्यमन' है परंतु भावमन श्रेणी चढ़े तब उसकं क्षायिक मम्यक्त्व या नही है । उपशम सम्यक्त्व होना आवश्यक है । वहां यदि
१९ आहारक मार्गणा उपशम सभ्यक्त्व करे तब द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहलाता है। द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में मरण
____ आहारक-शरीर, मन, वचन, के योग्य हो सकता है, यदि मरण ही तो देव गति में ही
वर्गणावों को ग्रहण करना, आहारक कहलाता जावेगा । प्रथमोपशम सम्यक्त्व में मरण नहीं
___ जब कोई जीब मरकर दूसरी गतिमें
जाता है। तब जन्मस्थान पर पहुँचते ही (५) क्षायिक सम्यक्त्व-अनन्तानबंधी
आहारक हो जाता है, इससे पहले अनाहारकक्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्न, सम्य
रहता है, किन्तु ऋजु गतिसे जानेवाला - म्मिथ्यात्व और सम्यग्रकृति इन सात प्रकृतियों
अनाहारक नहीं होता, क्योंकि वह एक समयमें के क्षय से जो सम्यक्त्र होता है उस क्षायिक
ही जन्मस्थान पर पहुंच जाता है। तेरहवें स यक्ल्त्र कहते है।
गुणस्थानवर्ती जीव जब केवल–समुद्घात करते १६)क्षायोपशमिक (वेदक) सयक्त्व- है तब प्रतरके २ समय, और लोकपूर्ण का १ अनन्तानबंधी ४, मिथ्यात्व १, सम्बग्मिथ्वात्व समय इन तीन समयों में अनाहारक होते है, १. इन ६ प्रकृतियों का उदयाभावी क्षघ ५ शेष समय अाहारक होते है 1 अयोग-केवली उपशम से तथा सम्यक्प्रकृति के उदय से जो और सिद्धभगवान् अनाहारकही होते है । सम्यक्त्व होता है । उसे क्षायोपशामिकः या वेदक
२० उपयोग सम्यक्त्व कहते है। इस सम्यक्त्व में सम्यकाप्रकृति के उदय के कारण सम्यग्दर्शन में चल, उपयोग-बाह्य तथा अभ्यन्तर कारणों के
होता ।