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प्रत्येक पदार्थ को ग्रहण करते समय अपने विवेक की आँख को खुला रखे । आसक्ति की भावना को अपने मन में न घुसने दें। धन, धान्य, स्वर्ण, चाँदी, जवाहरात, खेत, मकान, दुकान, बैलगाड़ी, घोड़ा, गाय, बैल, भैंस आदि किसी भी वस्तु को आवश्यकता के बिना ग्रहण न करे । जो वस्तु अपने एवं अपने पारिवारिक जीवन के लिए अनावश्यक है, उसका संग्रह करना परिग्रह है, पाप है, और पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अपराध है तथा अशान्ति का मूल है ।
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