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है, समाज का सुख, मेरा अपना सुख हैं और समाज का विकास, मेरा अपना विकास है ।
समाज का लाभ, स्पेन्सर का विचार :
मेरा अपना लाभ है,
समाज का सुख, स्पेन्सर का कथन है- समाज सदस्यों
मेरा अपना सुख हैं के लाभ के लिए होता है, न कि सदस्य
| और समाज का समाज के लाभ के लिए । इसका अर्थ केवल विकास मेरा अपना इतना ही है कि जब व्यक्ति समाज के हाथों विकास है। में अपने आपको समर्पित करता है, तब समाज भी उन्मुक्त भाव से उसे सुख का बिन्दु जब सिंधु में साधन प्रस्तुत कर देता है । मेरे विचार में | मिल जाता है, तब सबसे सुखी समाज वह है, जिसमें प्रत्येक । वह क्षुद्र से विराट व्यक्ति परस्पर हार्दिक सम्मान की भावना हो जाता है। रखता है और दूसरे के जीवन का समादर करता है।
याद रखिए, समाज के विकास में ही आपका अपना विकास है और समाज के पतन में अपका अपना पतन है । समाज का विकास करना, यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है । जब तक व्यक्ति में सामाजिक भावना का उदय नहीं होता है, तब तक वह अपने आप को बलवान नहीं बना सकता । एक बिंदु जल का क्या कोई अस्तित्व रहता है ? किन्तु वही बिन्दु जब सिंधु में मिल जाता है, तब वह क्षुद्र से विराट हो जाता है। इसी प्रकार क्षुद्र व्यक्ति समाज में मिलकर विराट् बन जाता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजीकरण में ही विकसित होता है ।
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