Book Title: Anand
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 333
________________ के साधन जुटाना, जैन-धर्म के विरुद्ध नहीं आत्मरक्षा के लिए है । परन्तु आवश्यकता से अधिक संग्रहीत उचित प्रतिकार के | एवं संगठित शक्ति, अवश्य ही संहार-लीला साधन जुटाना, का अभिनय करेगी, अहिंसा को मरणोन्मुखी जैन-धर्म के विरुद्ध बनाएगी । अतः आप आश्चर्य न करें कि नहीं है। | पिछले कुछ वर्षों से जो निशस्त्रीकरण का आन्दोलन चल रहा है, प्रत्येक राष्ट्र को साधनों का सीमित युद्ध सामग्री रखने को कहा जा रहा आधिक्य मनष्य को | है, वह जैन तीर्थंकरों ने हजारों वर्ष पहले उद्दण्ड बना देता है। | चलाया था । आज जो काम कानून द्वारा, 06 पारस्परिक विधान के द्वारा लिया जाता है, उन दिनों वह उपदेशों द्वारा लिया जाता था । भगवान् महावीर ने बड़े-बड़े राजाओं को जैन-धर्म में दीक्षित किया था और उन्हें नियम दिया गया था कि वे राष्ट्र रक्षा के काम में आने वाले शस्त्रों से अधिक शस्त्र संग्रह न करें, साधनों का आधिक्य मनुष्य को उद्दण्ड बना देता है । प्रभुता की लालसा में आकर वह कहीं न कहीं किसी पर चढ़ दौड़ेगा और मानव संसार में युद्ध की आग भड़का देगा । इसी दृष्टि से जैन तीर्थंकर हिंसा के मूल कारणों को उखाड़ने का प्रयत्न करते रहे हैं। जैन तीर्थंकरों ने कभी भी युद्धों का समर्थन नहीं किया । यहाँ अनेक धर्माचार्य साम्राज्यवादी राजाओं के हाथों की कठपुतली बनकर युद्ध के समर्थन में लगते आए हैं, राजा को परमेश्वर का अंश बताकर उसके लिए सब कुछ अर्पण कर देने का प्रचार करते आए हैं, वहाँ जैन तीर्थंकर इस सम्बन्ध में काफी कट्टर रहे हैं । 'प्रश्न व्याकरण' और 316

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