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पंचशील और पंचशिक्षा
वर्तमान युग में दो प्रयोग चल रहे हैं- एक अणु का, दूसरा सह-अस्तित्व का । एक भौतिक है, दूसरा आध्यात्मिक । एक मारक है, दूसरा तारक । एक मृत्यु है, दूसरा जीवन । एक विष है, दूसरा अमृत ।
अणु-प्रयोग का नारा है- 'मैं विश्व की महान् शक्ति हूँ, संसार का अमित बल हूँ, मेरे सामने झुको या मरो ।' जिसके पास मैं नहीं हूँ, उसे विश्व में जीवित रहने का अधिकार नहीं है । क्योंकि मेरे अभाव में उसका सम्मान सुरक्षित नहीं रह सकता ।
सह-अस्तित्व का नारा है - 'आओ, हम सब मिलकर चलें, मिलकर बैठें और मिलकर जीवित रहें, मिलकर मरें भी । परस्पर विचारों में भेद है, कोई भय नहीं । कार्य करने की पद्धति विभिन्न है, कोई खतरा नहीं । क्योंकि तन भले ही भिन्न हो, पर मन हमारा एक है । जीना साथ है, मरना साथ है । क्योंकि हम सब मानव है और मानव एक साथ ही रह सकते हैं, बिखर कर नहीं, बिगड़ कर नहीं ।'
पश्चिम अपनी जीवन-यात्रा अणु के बल पर चला रहा है और पूर्व सह-अस्तित्व की शक्ति से । पश्चिम - देह पर शासन करता
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तन भले ही भिन्न
हो, पर मन हमारा
एक है। जीना
मरना
साथ है, साथ है। क्योंकि हम सब मानव है ।
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