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3. अस्तेय - दूसरे के आधिपत्य की वस्तु को ग्रहण न करो । जो अपना है, उसमें सन्तोष रखो ।
4. ब्रह्मचर्य - मन से पवित्र रहो, तन से पवित्र रहो, विषय-वासना का परित्याग करो । ब्रह्मचर्य का पालन करो ।
5. मद त्याग - किसी भी प्रकार का मद मत करो, नशा न करो । सुरापान कभी हितकर नहीं है ।
उत्तराध्ययन सूत्र के 23 वें अध्ययन में केशी - गौतम चर्चा के प्रसंग पर 'पंच - शिक्षा' का उल्लेख मिलता है । पंचशील और पंच शिक्षा में अन्तर नहीं है, दोनों समान है, दोनों की एक ही भावना है । शील के समान शिक्षा का अर्थ भी यहाँ आचार है । श्रावक के द्वादश व्रतों में चार शिक्षा व्रत कहे जाते हैं। पंच शिक्षाएं ये हैं
जैन पंच शिक्षा :
1. अहिंसा जैसा जीवन तुझे प्रिय है, वैसा ही सबको। सब अपने जीवन से प्यार करते हैं, अतः किसी से द्वेष - घृणा मत करो ।
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2. सत्य - जीवन का मूल केन्द्र है । सत्य साक्षात् भगवान् है सत्य का अनादर आत्मा का अनादर है ।
3. अस्तेय - अपने श्रम से प्राप्त वस्तु पर ही तेरा अधिकार है । दूसरे की वस्तु के प्रति अपहरण की भावना मत रखो ।
4. ब्रह्मचर्य - शक्ति संचय । वासना संयम । इसके बिना धर्म स्थिर नहीं होता । संयम का आधार यही है । यह ध्रुव धर्म है ।
5. अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय पाप है । संग्रह में परपीड़न होता है । आसक्ति बढ़ती है । अतः परिग्रह का त्याग करो ।
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