________________
6
संसार में जो चारों ओर दुःख का प्रकृति, दुः ख की
हाहाकार है, वह प्रकृति की ओर से मिलने
वाला तो मामूली-सा ही है । यदि अधिक अपेक्षा हमारे सुख में ही अधिक
अन्तर्निरीक्षण किया जाए, तो प्रकृति, दुःख सहायक है।
की अपेक्षा हमारे सुख में ही अधिक सहायक है । वास्तव में जो कुछ भी ऊपर का दुख है,
वह मनुष्य पर मनुष्य के द्वारा ही लादा हुआ है । यदि हर एक व्यक्ति अपनी ओर से दूसरों पर किए जाने वाले दुःखों को हटा ले, तो यह संसार आज ही नरक से स्वर्ग में बदल सकता है। अमर आदर्श :
जैन-संस्कृति के महान् संस्कारक अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने तो राष्ट्रों में परस्पर होने वाले युद्धों का हल भी अहिंसा के द्वारा ही बतलाया है । उनका आदर्श है कि धर्म-प्रचार के द्वारा ही विश्व भर के प्रत्येक मनुष्य के हृदय में यह अँचा दो कि वह 'स्व' में ही सन्तुष्ट रहे, 'पर' की ओर आकृष्ट होने का अर्थ है- दूसरों के सुख-साधनों को देखकर लालायित हो जाना और उन्हें छीनने का दुःसाहस करना ।।
हाँ, तो जब तक नदी अपने पाट में प्रवाहित होती रहती है, तब तक उससे संसार को लाभ ही लाभ है, हानि कुछ भी नहीं है । ज्यों ही वह अपनी सीमा से हटकर आस-पास के प्रदेश पर अधिकार जमाती है, बाढ़ का रूप धारण करती है, तो संसार में हाहाकार मच जाता है, प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाता है। यही दशा मनुष्यों की है । जब तक सब के सब मनुष्य अपने-अपने 'स्व' में ही प्रवाहित रहते है, तब तक कुछ
314