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भगवान् महावीर ने उस समय अहिंसा का अमृतमय सन्देश दिया, जिससे भारत की काया पलट हो गई । मनुष्य राक्षसी भावों से हटकर मनुष्यता की सीमा में प्रविष्ट हुआ । क्या मनुष्य, क्या पशु, सभी के प्रति उनके हृदय में प्रेम का सागर उमड़ पड़ा । अहिंसा के सन्देश ने सारे मानवीय सुधारों के महल खड़े कर दिए । दुर्भाग्य से आज वे महल फिर गिर रहे हैं । जल, थल, नभ अभी-अभी खून से रंगे जा चुके हैं और भविष्य में इससे भी भयंकर रंगने की तैयारियाँ हो रही है । तीसरे महायुद्ध का दुःस्वप्न अभी देखना बन्द नहीं हुआ है । परमाणु बम के आविष्कार की सब देशों में होड़ लग रही हैं। सब ओर अविश्वास और दुर्भाव चक्कर काट रहे हैं, अस्तु, आवश्यकता है- आज फिर जैन - संस्कृति के, जैन तीर्थंकरो के, भगवान् महावीर के, जैनाचार्यों के 'अहिंसा परमो धर्मः' के सन्देश की । मानव जाति के स्थायी सुखों के स्वप्नों को एकमात्र अहिंसा ही पूर्ण कर सकती है, और कोई दूसरा विकल्प नहीं
अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् ।
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