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'भगवती सूत्र' युद्ध के विरोध में क्या कुछ कम कहते हैं ? यदि थोड़ा-सा कष्ट उठाकर देखने का प्रयत्न करेंगे तो बहुत कुछ युद्ध विरोधी विचार सामग्री प्राप्त कर सकेंगे । आप जानते हैं, मगधाधिपति अजातशत्रु कोणिक भगवान् महावीर का कितना परम भक्त था । 'औपपातिक सूत्र' में उसकी भक्ति का चित्र चरम सीमा पर पहुंचा दिया है । प्रतिदिन भगवान् के कुशल समाचार जानकर फिर अन्न-जल ग्रहण करना, कितना उग्र नियम है । परन्तु वैशाली पर कोणिक द्वारा होने वाले आक्रमण का भगवान् ने जरा भी समर्थन नहीं किया; प्रत्युत नरक का अधिकारी बताकर उसके पाप कर्मों का भण्डाफोड़ कर दिया । अजातशत्रु इस पर रुष्ट भी हो जाता है, किन्तु भगवान् महावीर इस बात की कुछ भी परवाह नहीं करते । भला पूर्ण अहिंसा के अवतार रोमांचकारी नर-संहार का समर्थन कैसे कर सकते थे ? जीओ और जीने दो : जैन तीर्थंकरों की अहिंसा का भाव
दूसरों के जीने में आज की मान्यता के अनुसार निष्क्रियता का
मदद भी करो रूप भी न था । वे अहिंसा का अर्थ- प्रेम,
और अवसर आने परोपकार, विश्व बन्धुत्व करते थे । स्वयं |
स पर दूसरों के जीवन आनन्द से जीओ और दूसरों को जीने दो, की या के लिये जैन तीर्थंकरों का आदर्श यही तक सीमित न
अपने जीवन की था । उनका आदर्श था- 'दूसरों के जीने में
आहूति भी दे मदद भी करो और अवसर आने पर दूसरों
डालो। के जीवन की रक्षा के लिये अपने जीवन की आहूति भी दे डालो । वे उस जीवन को कोई महत्व न देते थे, जो जन-सेवा के मार्ग में सर्वथा दूर रहकर एक-मात्र
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