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है। केवल रोटी का प्रश्न ही मुख्य नहीं है । रोटी के प्रश्न से भी बड़ा एक प्रश्न है कि मनुष्य अपने को पहचाने और अपनी सीमा को समझे । यदि मनुष्य अपने को नहीं पहचानता और अपनी सीमा को नहीं समझता, तो उसके लिए समाजीकरण, समाजवाद और सर्वोदयवाद सभी कुछ निरर्थक और व्यर्थ होगा। समाज की प्रतिष्ठा तभी रह सकेगी, जब व्यक्ति अपनी सीमा को समझ लेगा ।
अगस्त 1968
जैन भवन, मोती कटरा,
आगरा
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