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किसी
यदि मन में स्फूर्ति तथा उत्साह है, तो
दुबला-पतला शरीर भी जीवन की
दुर्गम घाटियों को
पार कर जाता है ।
केरु
शरीर भी जीवन की दुर्गम घाटियों को पार कर जाता है । तभी तो कहा जाता है
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
"
इच्छाओं का वर्गीकरण :
जब इच्छाएँ सजग मन की दासी बनकर चलती है, तो यह भी देखना चाहिए कि उनसे क्या सेवाएँ लेनी चाहिए । कौन-सी इच्छाएँ उपयोगी होती हैं और कौन - सी निरर्थक ।
इच्छाओं का यह वर्गीकरण करने से जीवन में सुख की व्यवस्था ठीक होती है, फिर इच्छाएँ निरर्थक और अनुपयोगी होती है, उन्हें मन से अलग करना होगा और फिर यह छाँटना होगा कि उपयोगी इच्छाओं में भी कौन प्रथम पूर्ति किए जाने योग्य है और किसको कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है । यदि भोजन करने की तत्काल आवश्यकता हुई, तो उसे प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि वह जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है; किन्तु उसके साथ-साथ अन्य इच्छाएँ, जिनकी तत्काल पूर्ति हुए बिना भी काम चल सकता है, उन्हें कुछ समय के लिए टालना ही होगा । जैसे भूख लगने पर भोजन करना है, यह आवश्यक है । किन्तु भोजन में मिष्टान्न खाना है, यह कोई आवश्यक नहीं है । यह केवल इच्छा है । इस प्रकार की इच्छा पूर्ण न भी हो, तो भी साधारण भोजन से काम चल जाना चाहिए और उसमें आनन्द का अनुभव होना चाहिए ।
इच्छाओं को ठुकराने की इस प्रक्रिया का आरम्भ कहाँ से हो, इस के लिए इच्छाओं के विश्लेषण की आवश्यकता है । इच्छाओं की तह में जाने से यह पता लगता है कि वे इच्छाएँ कहाँ तक उपयोगी और
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