Book Title: Anand
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 327
________________ शरीर ही सब कुछ है । अध्यात्मवादी कहेगा- यह ठीक नहीं है । यह शरीर ही आत्मा के अधीन है, जब तक शरीर है, तब तक बाह्य वस्तु का सर्वथा त्याग शक्य नहीं परन्तु अपनी तृष्णा पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए । बिना इसके अपरिग्रह का पालन नहीं हो सकेगा। अपरिग्रहवाद की सबसे पहली मांग है- इच्छा निरोध की । इच्छा निरोध यदि नहीं हुआ तो तृष्णा का अंत नहीं होगा । इसका अर्थ यह नहीं है कि सुखकर वस्तुओं का, खाने-पीने की वस्तुओं का सेवन ही न करें । करें, किन्तु शरीर रक्षा के लिए, सुख भोग की भावना से नहीं और वह भी निर्लिप्त होकर । अपरिग्रह और संस्कृति : अपरिग्रह का सिद्धान्त समाज में शान्ति उत्पन्न करता है, राष्ट्र में समताभाव का प्रसार करता है, व्यक्ति में एवं परिवार में आत्मीयता का आरोपण करता है। परिग्रह से अपरिग्रह की ओर बढ़ना यह धर्म है, संस्कृति है । अपरिग्रह में सुख है, मंगल है और शान्ति है । अपरिग्रहवाद में स्वहित भी है, परहित भी है। अपरिग्रहवाद अधिकार पर नहीं, कर्तव्य पर बल देता है । शान्ति एवं सुख के साधनों में अपरिग्रहवाद एक मुख्यतम साधन है । क्योंकि यह मूलतः आध्यात्मवाद- मूलक होकर भी समाज मूलक है। 310

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