Book Title: Anand
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 317
________________ हाँ, तो उस गरीब व्यक्ति ने सेठ और उसके भाई के आगे कांसे की टूटी-फूटी थाली में मोटी-मोटी रोटियाँ और आम का आचार रख दिया, साग पकाने की बटलोई में पीने के लिए जल रख दिया । सेठ बड़े आनन्द और प्रेम से खाना खाने लगा, किन्तु उसका छोटा भाई तो थाली, रोटी और बटलोई को ही देखता रहा । इस घटना पर विचारणीय प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि पेट के लिए ही भोजन करना है, तो भोजन तो दोनों के सामने एक जैसा है। एक बड़े प्रेम और रुचि के साथ भोजन करके अपनी क्षुधा तृप्त कर रहा है, दूसरा बार-बार उसको देखकर कुढ़ता है, खीजता है और आखिर बिना खाए ही उठ जाता है । अब प्रश्न यह होता है कि यदि भूख की शान्ति और पेट की तृप्ति के लिए ही भोजन है, तो फिर क्यों नहीं खाया गया ? इसका अर्थ है कि वह भूख के लिए नहीं खा रहा था। जहाँ सेठ ने भोजन करके आनन्द अनुभव किया, वहाँ उसका भाई दो-चार टुकड़े ही जहर की कड़वी गोली की भाँति निगल सका । -- अब जरा विचार करके देखें कि एक ही परिस्थिति में दो व्यक्तियों की मनःस्थिति भिन्न प्रकार की और एक-दूसरे से विपरीत क्यों है ? इसका कारण यह है कि एक ने मन का समाधान कर लिया । वह एक ओर सुन्दर मेज, कुर्सी पर सोने चाँदी के चमकते थालों में मनचाहा मिष्ठान्न खा सकता था, तो दूसरी ओर टूटी-फूटी कांसे की थाली में बिना चुपड़ी मोटी-रोटियाँ भी उसी प्रसन्नता के भाव से खा सकता था । वह जीवन की हर परिस्थिति और उलझन में समभाव से रह सकता था । वह भोजन मन के अहंकार के लिए नहीं, बल्कि क्षुधा की पूर्ति के लिए करता था । उसने जीवन की गति को नया मोड़ दिया था, इच्छा और कामनाओं का विश्लेषण करके उनका ठीक वर्गीकरण किया 300

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