Book Title: Anand
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 319
________________ ठसाठस भरा है कि प्रवेश करने का रास्ता बड़ा तंग है । चौबीसों घंटें आपको यह चिन्ता सताती होगी कि कहीं कोई चीज गिर न जाए । यदि किसी बच्चे के हाथ से कोई नुकसान हो जाता होगा, तो फिर वह बुरी तरह पीटा भी जाता होगा । अब बताइए, यह मकान आपके लिए कहाँ है ? यह तो बस फर्नीचर के लिए है ?' सेठ के पास इसका कोई उत्तर नहीं था । बात बिल्कुल ठीक है । जिस मकान को व्यक्ति अपने रहने के लिए बनाता है, उसे मन के अहंकार और अनावश्यक विकल्पों की पूर्ति के लिए महंगे मूल्य पर खरीदे गए सामान से भर देता है । और उन मेहमानों को सौंप दिया जाता है, जो जड़ हैं और जिन्हें उसके उपयोग का न कोई भान है, न कोई आनन्द है [ उक्त परिस्थिति पर विचार करने से पता चलेगा कि मकान एक आवश्यकता है । और यह भी अपेक्षणीय है कि वह साफ - सुथरा हो, हवा - पानी की सुविधा से युक्त हो । कोई धर्म, जिसका दिल-दिमाग सही है, यह नहीं कहता कि 'गृहस्थ अपना घर - बार छोड़कर, परिवार को, बाल-बच्चों को साथ लेकर वृक्षों के नीचे या फुटपाथ पर पड़ा रहे । वह यह भी नहीं कहता कि जीवन - यात्रा को ठीक तरह चलाने के लिए कुछ भी संघर्ष व श्रम न करो । और बस, इधर-उधर जूठी पत्तलों को चाट कर या भीख माँग कर जीवन गुजारो ।' यह व्यर्थ का वैराग्य है, वैराग्य का ढोंग है । जीवन में यथार्थता और वास्तविकता को स्वीकार किए बिना कोई भी धर्म चल नहीं सकता । और इसलिए जीवन की आवश्यकताओं से कोई धर्म इन्कार नहीं कर सकता । किन्तु इस सम्बंध में शर्त एकमात्र यही है कि आवश्यकताएँ वास्तव में आवश्यकताएँ हों, जीवन की मूलभूत समस्याएँ हों, सिर्फ अहंकार और दम्भ की परितृप्ति के लिए न हों । 302

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