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था । उसने चिन्तन के बल पर आवश्यक और उपयोगी इच्छाओं से भिन्न अन्य तरंगित इच्छाओं पर काबू पा लिया था । इच्छा और आवश्यकता :
इस प्रकार जीवन में इच्छा और आवश्यकता का भेद समझना होगा । इच्छाएँ, हमारे मन में रात-दिन जन्म लेती हैं और कुछ देर हुड़दंग मचाकर खत्म भी हो जाती हैं, उनमें से कुछ ऐसी बच जाती हैं, जो हमें परेशान किए रहती हैं । जब तक वे पूरी नहीं होती, चैन नहीं पड़ता है । मान लीजिए एक बहन को साड़ी की आवश्यकता है । और इसके लिए वह पति से आग्रह करती है, स्वयं भी खरीद लेती है, यह आवश्यक विकल्प है। किन्तु इसी के साथ यदि दूसरा विकल्प जुड़ जाए कि साड़ी अमुक प्रकार की हो, जरी की हो, बनारसी हो, नाइलोन या सिल्क की हो, तो यह गलत है । साड़ी का मूल्य तथा गुणवत्ता का जो विचार है, वह शरीर की आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि इच्छा और
अहंकार की पूर्ति के लिए है । जब इस प्रकार की गलत इच्छाओं से मनुष्य घिर जाता है, तो फिर यह विश्लेषण करना भी कठिन हो जाता है कि कौन सी इच्छा मात्र इच्छा है और कौन सी इच्छा आवश्यकता है ? कौन सही है और कौन गलत ?
एक बार मैं एक भाई के यहाँ गोचरी के लिए गया । जब भोजन ले चुका तो गृहस्वामी ने अतिथि कक्ष के कमरे को देखने का आग्रह किया । कमरा साज-सज्जा से चमक रहा था। कमरे में हर तरफ इतनी सजावट की चीजें थी कि इधर-उधर चलना-फिरना भी कठिन था । मैंने पूछा कि यह मकान आपने अपने लिए बनवाया है, या इन साज-सज्जाओं के लिए ? सेठ ने उत्तर दिया कि अपने लिए बनाया है महाराज ! मैंने कहा- 'सेठ ! आपका कमरा नाना प्रकार की साज-सामग्रियों से ऐसे
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