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यह शरीर ही आत्मा के अधीन है, जब तक शरीर है, तब तक बाह्य वस्तु का सर्वथा त्याग शक्य नहीं परन्तु अपनी तृष्णा पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए । बिना इसके अपरिग्रह का पालन नहीं हो सकेगा । अपरिग्रहवाद की सबसे पहली मांग है- इच्छा निरोध की । इच्छा निरोध यदि नहीं हुआ तो तृष्णा का अंत नहीं होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि सुखकर वस्तुओं का, खाने-पीने की वस्तुओं का सेवन ही न करें। करें, किन्तु शरीर की रक्षा के लिए, सुख भोग की भावना से नहीं और वह भी निर्लिप्त होकर ।
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