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परलोक के खूटे से बंधे रहते हैं । दोनों ही स्थितियों में आत्मा तो बंधी ही रहेगी । त्याग बन्धन-मुक्ति के लिए है। और इस तरह के त्याग में बन्धन-मुक्ति कहाँ है ? यहाँ का खूटा तो उखाड़ फेंकना सहज है, उसमें कुछ प्रशंसा आदि का प्रलोभन भी दिखता है, किन्तु परलोक का
खूटा उखाड़ना बहुत कठिन है । यह उन लोगों की स्थिति है, जो इच्छाओं के दास है, वे समस्त संसार के दास हैं । मन के स्वामी :
6 __उक्त स्थिति के विपरीत कछ लोग | कुछ लोग इच्छाओं इच्छाओं के स्वामी हैं । इच्छा जिनकी दासी है, | अनुवर्तिनी है, जो मन की तरंगों में नहीं बहते
ही समस्त संसार बल्कि मन जिनके संकेतों पर चलता है, जो
__ के स्वामी हैं। इच्छाओं को जब भी, जैसा भी चाहें मोड़ दे
जिसने मन को सकते हैं, वे इच्छाओं के स्वामी हैं, और वे ही |
जीत लिया, उसने समस्त संसार के स्वामी हैं । उन्हें ही भारतीय |
समूचे संसार को दर्शन जगदीश्वर कहता है, जगन्नाथ कहता
जीत लिया।
6 है । आचार्य शंकर ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा है- जिसने मन को जीत लिया, उसने समूचे संसार को जीत लिया ।
जितं जगत् केन ? मनो हि येन । और जो मन से पराजित हो गया, वह संसार से पराजित हो गया । संकल्पों का केन्द्र मन को माना गया है, शरीर और इन्द्रियाँ मन के प्रभाव में चलते हैं । यदि मन में किसी प्रकार की उदासी या बेचैनी होती है, तो शरीर भले कितना ही लम्बा-तगड़ा हो, वह अपनी शक्ति खो बैठता है । यदि मन में स्फूर्ति तथा उत्साह होता है, तो दुबल-पतला
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