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मनुष्य का दृष्टिकोण बन गया है । इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आज के इस युग से पूर्व समाजवाद का अस्तित्व नहीं था । भगवान् महावीर
और बुद्ध के युग के राजा गणतन्त्री थे । गणतन्त्र भी समाजवाद का ही एक प्राचीनतर रूप है। आज के युग में गांधीजी ने सर्वोदय की स्थापना की और आचार्य विनोबा ने उसकी विशद व्याख्या की । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि सर्वोदय पहले कभी नहीं था ।
गांधीजी से बहुत पूर्व जैन संस्कृति के महान् उन्नायक आचार्य समन्तभद्र ने भगवान् महावीर के तीर्थ एवं संघ के लिए सर्वोदय का प्रयोग किया था। आचार्य
6 के कथन का अभिप्राय यही था कि भगवान् मेरे अपने विचार में महावीर के तीर्थ में और भगवान् महावीर के जहाँ अहिंसा और शासन में और भगवान् महावीर के संघ में अनेकान्त है, वहीं सबका उदय है, सबका कल्याण है और सबका | सच्चा समाजवाद है, विकास है । किसी एक वर्ग का, किसी एक वही सच्चा सम्प्रदाय का अथवा किसी एक जाति-विशेष | गणतन्त्रवाद है, और का ही उदय सच्चा सर्वोदय नहीं हो सकता। वहीं सच्चा जिसमें सर्व-भूत हित हो, वही सच्चा सर्वोदय सर्वोदयवाद है। है । मेरे अपने विचार में जहाँ अहिंसा और अनेकान्त है, वहीं सच्चा समाजवाद है, वहीं सच्चा गणतन्त्रवाद है और वहीं सच्चा सर्वोदयवाद है।
आज का समाजवाद भले ही आर्थिक आधार पर खड़ा हो, पर मेरे विचार में केवल अर्थ से ही मानव-जीवन की समस्याओं का हल नहीं हो सकता । उसके लिए धर्म और अध्यात्म की भी आवश्यक रहती
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