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तुम अपनी आवश्यकताओं को सीमित करो । जो अपार साधनसामग्री तुम्हारे पास हैं, उसका पूर्ण रूप में नहीं तो, उचित सीमा में विसर्जन करो । एक सीमा से अधिक धन पर अपना अधिकार मत रखो,
आवश्यक क्षेत्र, वास्तु रूप भूमि से अधिक भूमि पर अपना स्वामित्व मत रखो । इसी प्रकार पशु, दास-दासी आदि को भी अपने सीमा-हीन अधिकार से मुक्त करो।
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