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लोग, जिनके पास सर्व-ग्राही लम्बे-चौड़े जो अपार साधन, साधन तो नहीं होते, पर इच्छाएँ असीम दौड़ सामग्री तुम्हारे पास | लगाती रहती हैं, वे भी इच्छा परिणाम के हैं, उसका पूर्ण रूप द्वारा समाजोपयोगी उचित आवश्यकताओं की में नहीं तो, उचित
पूर्ति करते हुए भी अपने अनियन्त्रित सीमा में विसर्जन
इच्छा-प्रवाह के सामने अपरिग्रह का एक करो।
आन्तरिक अवरोध खड़ा कर उसे रोक सकते 06
हैं।
इच्छा परिमाण- एक प्रकार के स्वामित्व-विसर्जन की प्रक्रिया थी। महावीर के समक्ष जब वैशाली का आनन्द श्रेष्ठी इच्छा परिमाण व्रत का संकल्प लेने उपस्थित हुआ, तो महावीर ने बताया- “तुम अपनी आवश्यकताओं को सीमित करो । जो अपार-साधन सामग्री तुम्हारे पास हैं, उसका पूर्ण रूप में नहीं तो, उचित सीमा में विसर्जन करो । एक सीमा से अधिक धन पर अपना अधिकार मत रखो, आवश्यक क्षेत्र, वास्तु रूप भूमि से अधिक भूमि पर अपना स्वामित्व मत रखो । इसी प्रकार पशु, दास-दासी आदि को भी अपने सीमा-हीन अधिकार से मुक्त करो ।”
___ स्वामित्व विसर्जन की यह सात्त्विक प्ररेणा थी, जो समाज में सम्पत्ति के आधार पर फैली अनर्गल विषमताओं का प्रतिकार करने में सफल सिद्ध हुई । मनुष्य जब आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति व वस्तु के संग्रह पर से अपना अधिकार हटा लेता है, तब वह समाज और राष्ट्र के लिए उन्मुक्त हो जाती है । इस प्रकार अपने आप ही एक सहज समाजवादी अन्तर् प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है ।
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