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भाई-बहिनों से तथा बाद में परिजन और पौरजनों से । वहीं व्यक्ति आगे चलकर नगर से, प्रान्त से, और एक दिन अपने सम्पूर्ण देश से समाजीकरण कर लेता है। अब किसी अन्य देश की सेना हमारे देश पर आक्रमण करती है और हमारे देश की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने पर उतर आती है, तब देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक एवं राष्ट्र स्वाभिमान जागृत हो जाता है और वह अपनी पूर्ण शक्ति से अपने देशवासियों के साथ मिलकर, उस आक्रांता का विरोध करता है और उसे पराजित करने के लिए अपना सर्वस्व देश के लिए निछावर कर डालता है। व्यक्ति के समाजीकरण का यह एक सर्वोच्च रूप है। भले ही हमारे देश में अनेक जाति, अनेक वर्ग, अनेक सम्प्रदाय हों किन्तु विशाल समाजीकरण के द्वारा उस अनेकता में हम एकता स्थापित कर लेते हैं, क्योंकि देश की रक्षा और व्यवस्था में हम सबका समान हित
भले ही हमारे देश है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है,
में अनेक जाति, एक देश के दो वर्ग वर्षों से लड़ते चले आ
वर्ग, सम्प्रदाय हों रहे हैं । परन्तु जब देश पर संकट आता है
किन्तु विशाल तब सब अपना विरोध भूलकर एक हो जाते
समाजीकरण के हैं । यह सब क्यों होता है ? समाजीकरण के द्वारा उस अनेकता कारण ही । समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति में हम एकता के जीवन में जैसे-जैसे विकास पाती जाती है, | स्थापित कर लेते हैं, वैसे-वैसे उसका जीवन वैयक्तिक से सामाजिक। क्योंकि देश की । बनता जाता है । मेरे कहने का अभिप्राय | रक्षा-व्यवस्था में ही इतना ही है कि समाजीकरण का मूल तत्व
हम सबका व्यक्ति के अंदर रहने वाली सामाजिक भावना | समान हित है। एवं समान हित की भावना ही है ।
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