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आसक्ति जितनी ही कम होती जाएगी, परिग्रह का अंश उतना ही कम होता जाएगा। इस
जो आने पर हर्ष प्रकार परिग्रह के रहते भी अपरिग्रही बनना
और जाने पर विषाद एक उच्च श्रेणी की कला है और उस कला
नहीं करता, वही को कोई बड़ा कलाकार ही प्राप्त कर पाता
जीवन की कला को है । इस कला को प्राप्त करने के लिए न
प्राप्त करता है। गम्भीर शास्त्रों के ज्ञान की आवश्यकता है
और न किसी विशिष्ट कर्म-काण्ड की । इसके लिए तो उस प्रकार का जीवन बनाने की ही आवश्यकता होती है। अपनी मनोवृत्ति का निर्माण करने से कला हस्त-गत हो जाती है । इस कला को जो हस्त-गत कर लेगा, वह संसार में किसी भी परिस्थिति में, दारुण से दारुण प्रसंग पर भी नहीं रोएगा । उसके पास हजारों-लाखों आएँगे और जाएँगे, परिवार घटेगा और बढ़ेगा एवं उथल-पुथल होगी, पर वह प्रत्येक अवसर पर अलिप्त रहेगा। सुख में मग्न होकर फूलेगा नहीं और दुख में मुरझाएगा भी नहीं ।
___ कोई भी मनुष्य संसार का खुदा बन कर नहीं बैठ सकता । मनुष्य तो पामर प्राणी है । मिट्टी का पुतला है और धीमी-धीमी होने वाली हृदय की धड़कन पर उसकी जिन्दगी निर्भर हैं । उसकी अपनी जिन्दगी का भी क्या भरोसा है ? अभी है और अभी नहीं है । ऐसी स्थिति में दूसरी चीजों पर कैसी ममता ? कैसी आसक्ति ? वह तो आएगी भी और जाएगी भी । आने पर जो हँसेगा, जाने पर उसे रोना पड़ेगा । अतएव जो आने पर हर्ष और जाने पर विषाद नहीं करता, वही जीवन की कला को प्राप्त करता है । जिसके हृदय में आसक्ति नहीं है, तृष्णा नहीं है, राग नहीं हैं, वह प्रत्येक परिस्थिति में समभाव में रहेगा
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