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ने कहा- आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात् - आनन्द ही ब्रह्म है । यह आनन्द ही जीवन का परम लक्ष्य है । वह चैतन्य है । अतः इसका निष्कर्ष यह हुआ कि आनन्द प्राप्ति के लिए इच्छाओं के पीछे भटकने की जरूरत नहीं है । इच्छाओं पर नियंत्रण करने की जरूरत है । जीवन में अब तक क्या मिला है और क्या प्राप्त करना शेष है, इस चक्कर में मत फंसो । भगवान् महावीर ने कहा है- इमं च मे अत्थि, इमं च नत्थि ! - यह मेरे पास है, यह नहीं है। इस भंवर जाल में जो आदमी फँसा, वह डूब गया
मंझधार में । सुख और आनन्द का मार्ग यही 6
| है कि जो तुम्हें प्राप्त है, अपने प्रारब्ध एवं सुख और आनन्द
पुरुषार्थ से जीवन में जो कुछ पा सके हो, का मार्ग यही है कि
| उसी में आनन्द की अनुभूति करो । इच्छाओं जो तुम्हें प्राप्त है,
को वहीं पर केन्द्रित करो । जो असंभव है, उसी में आनन्द की
अशक्य है, जिसे प्राप्त नहीं कर सकते और अनुभूति करो।
जिसे प्राप्त करके जीवन को कुछ लाभ नहीं 6
होने वाला है, उसकी चिन्ता छोड़ दो । इच्छाओं और आशाओं को मोड़ लो । इच्छाओं पर संयम आवश्यक है।
भगवान् महावीर ने जीवन की इसी प्रक्रिया को इच्छा परिमाण व्रत कहा है, अनन्त इच्छाओं का सीमाकरण कहा है । जब इच्छाएँ सीमित होंगी तो आवश्यकताएँ भी सीमित हो जायेंगी । जब आवश्यकताएँ सीमित होगी तो मनुष्य की जीवन-यात्रा के द्वन्द्व, संघर्ष, विग्रह कम हो जायेंगे । अतः द्वन्दातीत स्थिति में ही सुख है, शांति है, आनन्द है । अन्ततः वही आनन्द जीवन का परम सत्य है ।
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