________________
मृत्यु के दायरे में जा रहा है । इनके स्वर्ग और मुक्ति मरने पर है, जीते जी नहीं । होना तो यह चाहिए था कि हजारों धर्मगुरु प्रतिदिन के प्रवचनों में बांग्लादेश के जातीय विनाश के सम्बन्ध में खुलकर बोलते, हिंसा के विरोध में वातावरण तैयार करते । कम से कम इतना तो हो सकता था, पर देखते है, इतना भी कहाँ हुआ ? सितम्बर 1971
जैन भवन, मोतीकटरा, आगरा
236