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| लिए नहीं है । उसे हिंसा पर प्रत्याक्रमण 06 अहिंसा हिंसा को करना चाहिए । गाँधीजी के युग में ऐसा कुछ केवल सहन करने
हुआ था, परन्तु जल्दी-जल्दी ही अहिंसा के के लिए नहीं है।
इस ज्वलन्त रूप पर पाला पड़ गया और उसे हिंसा पर
आज अहिंसा ठण्डी हो गई है । आज के प्रत्याक्रमण करना
अहिंसावादी धर्मगुरु, अपने लाखों अनुयायी चाहिए।
होने का दावा करते हैं, यदि सामूहिक रूप में 6 अहिंसात्मक प्रतिकार के लिए ये लोग बांग्लादेश
की सीमाएँ पार करें और नंगी संगीनों के सामने छातियाँ खोलकर खड़े हो जाएंगे तो पाकिस्तान तो क्या, सारा विश्व हिल उठेगा । जब विश्व की ओर से उक्त हजारों, लाखों बलिदानियों को लेकर पाकिस्तान पर सामूहिक नैतिक आक्रमण होगा तो पाकिस्तान का दम्भ टूट जाएगा । पर ऐसा नैतिक साहस है कहाँ आज के अहिंसावादियों में ? साग-सब्जी और कीड़े-मकोड़े की नाम मात्र की अहिंसा करके ही आज के ये तथाकथित अहिंसावादी संतुष्ट हैं । तथा अहिंसा की यह निर्माल्य प्रक्रिया अहिंसा के दिव्य तेज को धूमिल कर रही है । यदि आपकी अहिंसा विश्व के जघन्य हत्याकांडों का वस्तुतः कोई प्रतिकार नहीं कर सकती, तो फिर अहिंसा का दम्भ क्यों ? फिर तो क्यों नहीं, यह स्पष्ट घोषणा कर देते कि हिंसा का उत्तर हिंसा ही है, अहिंसा नहीं । पर इतना भी साहस कहाँ है ?
प्रत्यक्ष अहिंसक प्रत्याक्रमण की बात छोड़िए, आज तो ये मेरे धर्म गुरु साथी मौखिक विरोध भी नहीं कर रहे हैं । हजारों की सभा में उपदेश होते हैं, वही घिसे-पिटे शब्द जिसमें कुछ भी तो प्राण नहीं । वर्तमान की समस्याओं को छूते तक नहीं । समग्र उपदेश जीवन के पार
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