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मन को उल्लसित नहीं करता, वह उसे उदास बनाता है, पर प्रकाश का स्पर्श पाकर वह अंधकार दूर भाग जाता है और मानव जीवन का कण-कण आलोकित हो उठता है । दीपावली पर्व क्या था ? इसके पीछे हमारा सही दृष्टिकोण क्या था ? उसे आज हम भूल गये हैं । अन्दर
और बाहर की स्वच्छता ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य था । गंदगी हिंसा का प्रतीक है और स्वच्छता अहिंसा का प्रतीक है । हम गंदगी को दूर करके हिंसा को दूर करते हैं और स्वच्छता को लाकर हम अहिंसा की आराधना करते हैं । दीपावली पर्व की आराधना भी एक प्रकार से अहिंसा की आराधना है। प्रकाश की आराधना को भारतीय संस्कृति में बड़ा ही महत्वपूर्ण समझा गया है । अहिंसा और कमल :
भारतीय साहित्य और संस्कृति में प्रकाश की उपासना के बाद कमल को भी बड़ा गौरवपूर्ण स्थान मिला है । जीवन के प्रत्येक पहलू में कमल आकर खड़ा हो गया है । मुख-कमल, कर-कमल, चरण-कमल
और हृदय-कमल । भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण मानव-शरीर को कमलमय बना दिया है । नेत्र को भी कमल कहा गया है। कमल भारतीय संस्कृति में और भारतीय साहित्य में इतना अधिक परिव्याप्त हो चुका है कि उसे जीवन से अलग नहीं किया जा सकता । साहित्य संस्कृति और जीवन में कमल इतना व्याप्त हो चुका है कि वह हमारे आध्यात्मिक दृष्टिकोण में भी प्रवेश कर गया है । महाश्रमण महावीर ने अपने एक प्रवचन में कहा है कि अध्यात्म-साधक को संसार में इस प्रकार रहना चाहिए, जिस प्रकार सरोवर में कमल रहता है । कमल-जल में रहता है, कीचड़ में पैदा होता है, पर उस कीचड़ अथवा जल से वह लिप्त नहीं होता । संसार में रहते हुए भी संसार के संकल्पों और विकल्पों की माया से विमुक्त रहना, यही
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