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अथवा घूम-फिरकर अहिंसा को ही धर्म माना है फिर भले ही किसी ने अहिंसा को प्रेम कहा है, किसी ने अहिंसा को सेवा कहा है, किसी ने अहिंसा को नीति कहा है और किसी ने भ्रातृत्व - भाव कहा है । ये सब अहिंसा के ही विविध विकल्प और नाना रूप है । अहिंसा ही परम धर्म है ।
दिसम्बर, 1966
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जैन भवन, लोहामण्डी, आगरा