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छोड़कर हे अर्जुन ! तू मेरी शरण में आ जा ।” अर्थात् मेरा विचार ही तेरा विचार हो, मेरी वाणी ही तेरी वाणी हो और मेरा कर्म ही तेरा कर्म हो । इससे बढ़कर और इससे प्रबलतर व्यक्तिवाद का अन्य उदाहरण नहीं हो सकता ।
दोनों का समन्वय :
मैं आपसे व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध में कह रहा था । समाजवादी और व्यक्तिवादी दोनों प्रकार की व्यवस्थाओं के मूल उद्देश्य में किसी प्रकार का भेद नहीं है । व्यवस्था चाहे व्यक्तिवादी या समाजवादी हो, उसका मूल उद्देश्य एक ही है- व्यक्ति और समाज का विकास । व्यक्तिवादी व्यवस्था में समाज का तिरस्कार नहीं हो सकता और समाजवादी व्यवस्था में व्यक्ति की सत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता । समाज का विकास व्यक्ति पर आश्रित है, तो व्यक्ति का विकास भी समाज पर आधारित रहता है । व्यक्ति समाज को समर्पण करता है और समाज व्यक्ति को प्रदान करता है । व्यक्ति और समाज का यह आदान और प्रदान ही, उनके एक-दूसरे के विकास में सहयोगी और सहकारी है । अपने आप में दोनों बड़े हैं । दोनों एक दूसरे पर आश्रित रहकर ही जीवित रह सकते हैं । यदि व्यक्ति समाज की उपेक्षा करके चले तो सुव्यवस्था नहीं रह सकती । और समाज व्यक्ति को ठुकराये तो वह समाज भी तनकर खड़ा नहीं रह सकता ।
आज के
स
व्यक्ति समाज को
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समर्पण करता है
और समाज व्यक्ति को प्रदान करता है।
स
युग
में व्यक्तिवाद और समाजवाद की बहुत अधिक