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अहिंसा, हिंसा को सहने भर के लिए हो गई है । बर्बर अत्याचार हो रहा हो, दमन चक्र - चल रहा हो, बेगुनाहों का कत्लेआम हो रहा हो, और हम अहिंसावादी चुपचाप यह सब सहन करते जाएं कि हम कितने साधु पुरुष हैं, कितने क्षमाशील, संयमी हैं ? आज के अहिंसावादी धर्मगुरु, अपने लाखों अनुयायी होने का दावा करते हैं, यदि सामूहिक रूप में अहिंसात्मक प्रतिकार के लिए ये लोग नंगी संगीनों के सामने छातियाँ खोलकर खड़े हो जायें तो एक देश तो क्या सारा विश्व हिल उठेगा ।
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