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अधूरी साधना है । संपूर्ण अहिंसा की साधना के लिए प्राणी मात्र के साथ मैत्री भाव रखना, उनकी सेवा करना, उन्हें कष्ट से मुक्त करना आदि विधेयात्मक पक्ष पर भी समुचित चिंतन-मनन करना होगा। जैन आगमों में जहाँ अहिंसा के साठ एकार्थक नाम दिये गये है, वहाँ वह दया, रक्षा, अभय आदि के नाम से भी अभिहित की गई है । 1
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जैन आगमों, दर्शनों एवं साधना पंथों में ही अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है, ऐसी बात नहीं - विश्व के सभी धर्मों ने अहिंसा को एक स्वर से स्वीकारा है । बौद्ध धर्म में अहिंसक व्यक्ति को आर्य ( श्रेष्ठ पुरुष ) कहा गया है । इसका अटल सिद्धांत इसी भावना पर आधारित है कि मानव दूसरों को अपनी तरह जानकर न तो किसी को मारे और न किसी को मारने की प्रेरणा करें 12 जो न किसी का घात करता है और न दूसरों से करवाता है, न स्वयं किसी को जीतता है न दूसरों से जीतवाता है, वह सब प्राणियों का मित्र होता है, उसका किसी के साथ वैर नहीं होता है ।
अहिंसा परमो धर्मः
वैदिक धर्मों में भी 'अहिंसा परमो धर्मः' के अटल सिद्धांत को समक्ष रख कर उसकी महत्ता को स्वीकारा गया है । अहिंसा ही सबसे उत्तम एवं पावन धर्म है, अतः मनुष्य को कभी भी, कहीं भी और किसी
1. प्रश्न व्याकरण सूत्र ( संवर द्वार )
(क) दया देहि-र
2. सव्वे, तसंति दण्डस्स, सव्वेसं जीवितं पियं ।
अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये || 3. यो न हन्ति न धावेति, न जिनाति न जायते । मित्तं सो सव्व भूतेसु, वैरं तस्स न केनचित् ।।
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हे- रक्षा
प्रश्नव्याकरण वृत्ति
धम्मपद 10/1
इतिवृत्तक पृ. 20