________________
वृत्तियाँ : मूर्च्छित या मृत:
पहाड़ी बालक ने एक भूल की थी और बड़ी भयंकर भूल की थी कि मूर्च्छित साँप को उसने मरा हुआ समझ लिया था । अक्सर वैसी ही भूल हमारे साधक भी आज साधना - क्षेत्र में किए जा रहे हैं । और उस भूल का परिणाम यह है कि आज साधकों के लिए ही दम्भ, मायाचार व पाखण्ड जैसे शब्द शिकायत के रूप में जनता की जबान पर आ रहे हैं ।
पिछले दिनों समाचार-पत्रों में पढ़ा था कि बड़े-बड़े अस्पतालों में जीवित व्यक्तियों को भी मुर्दों के साथ डाल दिया जाता है। उन्हें मूर्च्छित या बेहोश देखकर डॉक्टर लोग मरा समझ लेते हैं या लापरवाही कर जाते हैं। और बेचारे जीवित व्यक्तियों को भी मुर्दों के साथ फेंक दिया जाता है । उनमें से कुछ पुनः जागृत हो जाते हैं और फिर यह शोर होता है कि जीवित व्यक्ति मुर्दों के साथ फेंक दिया गया ।
साधक के जीवन में भी यही लापरवाही चल रही है । वह वृत्तियों को मुर्दा समझ कर एक ओर डाल देता है और उदासीन हो जाता है । पर जब वे मुर्दे जाग उठते हैं, तो हम चौंक पड़ते हैं । आवश्यकता इस बात की है कि साधक इन वृत्तियों की शव - परीक्षा करें कि वस्तुतः वे मरी हैं या मूर्च्छित हैं ?
सच्चा वैराग्य क्या है ?
संस्कृत के एक आचार्य ने कहा है
विकार - हेतौ सति विक्रियन्ते, येषां न चेतांसि त एव धीराः ।
विकार के हेतु जब सामने उपस्थित हों, मोह के जागृत होने के
196