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सामने दाल-रोटी रख दी । आपने खाया और भूख शांत हो गई। अब आप बाजार में निकल पड़े। किसी हलवाई की दुकान के सामने पहुँच गये । वहाँ तरह-तरह की मिठाईयाँ एवं नमकीन सजे हुए थे। देखते ही आपके मुँह में पानी छूट आता है । जेब गर्म नहीं है, अतः आप कुछ ले नहीं सकते या स्वास्थ्य ठीक नहीं है अतः कुछ खा नहीं सकते । पर आपकी इच्छा उधर ही दौड़ रही है । आपको वह मिठाई बिना खाए चैन नहीं पड़ रहा है।
यहाँ पर इच्छा का विश्लेषण करना पड़ेगा । रोटी बिना खाये जीवन नहीं चल सकता, यह सत्य है । पर क्या मिठाई बिना खाये भी जीवन चल नहीं सकता ? लाखों-करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें जिन्दगी भर मिठाई खाने को नहीं मिलती । तो क्या उनकी जिन्दगी नहीं कटती । अतः स्पष्ट है कि रोटी की इच्छा एक आवश्यकता है और मिठाई की इच्छा एक अनावश्यक इच्छा है । रोटी के बिना जीवन नहीं चल सकता, पर मिठाई के |
रोटी की इच्छा एक बिना जीवन चल सकता है और चलता भी
आवश्यकता है और है । अस्तु, मिठाई के अभाव में हमारे मन में
मिठाई की इच्छा जो पीड़ा उत्पन्न होती है, वह निरर्थक है ।
एक अनावश्यक इच्छा नियंत्रण द्वारा उस पीड़ा से बचा जा
इच्छा है। सकता है । इच्छाओं के निरोध को तप कहा गया है।
विश्व के बड़े-बड़े सम्राटों का इतिहास हम पढ़ते है कि उन्हें अपने विशाल साम्राज्य में सुख प्राप्त नहीं हुआ, वे आगे ही आगे दौड़ते रहे, राज्य-लिप्सा के चक्कर में । रावण के पास इतना बड़ा 'रनवास' था, एक से एक रूपवती रानियाँ थी। इस पर भी उसका मन संतुष्ट
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