________________
है- जब आप में शक्ति है, आप किसी प्रिय वस्तु का स्वतः स्फूर्त त्याग करने में समर्थ हैं, तभी आप जो त्याग करते हैं, वह सच्चा त्याग है'साहीणे चयइ भोए, से हु चाइत्ति वुच्चई।' जिस आत्मा में संसार के धन, ऐश्वर्यो, भोगों को प्राप्त करने की शक्ति है, अथवा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा शक्ति रखता है, संकल्प उसके मन में उठते हैं, वह साधक उन इच्छाओं पर, विकल्पों पर नियन्त्रण करता है, तो वह वास्तव में त्यागी है । अन्यथा, तो जैसी कि कहावत है- 'नारी मुई घर संपत नासी, मूंड मुंडाय भए सन्यासी ।' जैसे लाचारी के त्यागी, सन्यासी तो बहुत हैं । उनसे कोई त्याग का महत्त्व नहीं होता, बल्कि कहना चाहिए, त्याग की विडम्बना ही होती है । उपहास ही होता है । इच्छा के निरोध में त्याग
___ वास्तव में जो त्याग है, वह वस्तु का ही नहीं, उसकी इच्छा का भी त्याग होना चाहिए । क्योंकि अंततः इच्छा ही परिग्रह है । वही बाह्य परिग्रह को बढ़ाती है । इच्छा जागृत हुई और वस्तु मिल गई । तब तो परिग्रह है ही, पर इच्छा जागृत होने पर यदि वस्तु न भी मिली तब भी वह परिग्रह है । इसका अभिप्राय यह है कि परिग्रह वस्तु में नहीं, इच्छा में है। परिग्रह का मूल इच्छा है । मात्र वस्तु को परिग्रह नहीं कहा जाता है।
यहाँ मूल प्रश्न इच्छाओं के संयम का है । इच्छा जागृत होने पर उसका विश्लेषण करना चाहिए । जो इच्छा हमें किसी वस्तु की ओर प्रेरित कर रही है, वह इच्छा एवं वस्तु क्या है, आवश्यक है, या अनावश्यक है ? उस इच्छित वस्तु के अभाव में भी हमारा जीवन चल सकता है या नहीं । मान लीजिए आपको भूख लगी है, बड़ी जोर की भूख लगी है । अतः आपको खाने की इच्छा हुई और किसी ने आपके
216