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अन्तःस्फुरित होगा, भीतर से ज्योति जलेगी और वही ज्योति वस्तुतः उसके समस्त जीवन को आलोकित करती रहेगी । तभी निर्वाण होगा:
आप पूछेगे यह ज्योति कब जलेगी और यह वैराग्य का सच्चा रूप जीवन में कब निखरेगा ? मैं आपसे कह देना चाहता हूँ कि जब
आप और हम अपनी वृत्तियों को दबाने का जब वृत्तियाँ बुझ | नहीं, अपितु निर्मूल करने का प्रयत्न करेंगे । जाएंगी तो निर्वाण बाहरी दबाव से नहीं, बल्कि अंतःकरण की अपने आप प्राप्त पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होंगे। जब वृत्तियाँ बुझ हो जाएगा। जाएँगी तो निर्वाण अपने आप प्राप्त हो
26 जाएगा।
निर्वाण शब्द हम बोलते हैं और उसका मोक्ष के अर्थ में प्रयोग करते हैं । वैदिक परम्परा में इस शब्द का कोई खास प्रयोग नहीं हुआ है, किन्तु जैन और बौद्ध वाङ्मय में स्थान-स्थान पर यह शब्द मिलता है ।
___ 'निर्वाण' का सीधा अर्थ 'मोक्ष' नहीं है । वह तो भावार्थ या फलितार्थ है । निर्वाण का शब्दार्थ है- बुझ जाना ! जलते दीपक का गुल हो जाना अतएव संस्कृत साहित्य के एक आचार्य ने कहा है- 'निर्वाण-दीपे किमु तैलदानम् ?'
बौद्ध दर्शन के उद्भट्ट विद्वान आचार्य अश्वघोष ने निर्वाण का इसी अर्थ में प्रयोग किया हैदीपो यथा निर्वृत्तिमभ्युपेतो, नैवावहिं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न कांचिद् विदिशं न कांचिद्, स्नेह-क्षयात् केवलमेति शांतिम् ।।
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